भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem>हम ही सच...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>हम ही सच थे, कभी न हम बहके
आप तो खा के भी क़सम बहके

आप के हाथ बिक चुके होंगे
वरना कैसे कोई क़लम बहके

अपना रिश्ता बहुत पुराना है
किस के कहने पे मोहतरम बहके

आंसुओं की झड़ी लगा देंगे
इक ज़रा सा जो चश्मे नम बहके

उनके कूचे से आ रहे होंगे
चल रहे हैं क़दम क़दम बहके

</poem>