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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>अगर सच्चाई पर अख़बार आ जाएं
तो ख़तरे में कई किरदार आ जाएं

उठा दें चारा साज़ों की दुकानें
सड़क पर जो दिले बीमार आ जाएं

गुज़ारे जा चुके सारे बुरे दिन
हमारे पास फिर से यार आ जाएं

अगर इतनी मोहब्बत भाई से है
गिरा कर बीच की दीवार आ जाएं

पड़ेगी चार कांधों की ज़रूरत
मेरी जागीर के हक़ दार आ जाएं
</poem>