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<poem>हम इश्क़ वालों के पाँव इतने रमे हुए हैं
जो तपते सेहरा की धूप में भी जमे हुए हैं

तुम्हारे जाने के बाद क्या हो पता नहीं है
अभी तलक तो हमारे आंसू थमे हुए हैं

हमें भी आता है हर तरह से जवाब देना
जहां तलक हम नमे हुए हैं , नमे हुए हैं

अगर कहूँ मैं कि वो हैं क़ातिल कोई न माने
जनाबे आली के हाथ इतने रमे हुए हैं

सलाम करता हूँ उन अज़मत को सर झूका कर
जो पेड़ नफ़रत की आंधियों में जमे हुए हैं</poem>