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कद भूली मैं / नीलम पारीक

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कद भूली मैं
वो सिंझ्या स्यू सवेरे ताईं री उडीक
वो अँधेरे स्यूं डरतो मेरो जीव
वे नींद स्यू विहीन रातां
जिणरा ठा नही कितना संजोया सुपना
नहीं भूली वे काळी सूनी रातां
सुपना तो दूर आँख्या में नीर भरी रातां
शिकायत भी करती तो किन स्यू
कौन हो मेरो
जी स्यु आस ही वो ही नी हो अपणो
रूठ न जावे इण बात रो बी डर
सालतो रात्यु दिन
मन रे किणी कुने में
अंकुरायो आस रो बिरवो
कदै मुरझावतो तो
कनाई झूठे प्रेम री बिरखा स्यूं पांघर जांवतो
पाल्यो पोस्यो बनतो रह्यो रूंख
पर अजे ही न लाग्यो
इमरत फल तो दूर
फगत सौरम देंवतो पुष्प
लाग्या तो बस कीं पानडा
तीखी नोक रा
इण रूंख री छियां भी तेरी खातर ही है
मेरे हिस्से तो आज भी बस
तीखा कांटे दार पानडा ही है
</poem>
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