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<poem>
वो खारो समन्दर
अपने खारेपण ने
थामे अपने कण्ठ में
शिव ज्यूँ
बेली बादळ रे हाथ
पुगावे भैण धरा रे
टाबरियां ने
इमरत जेड़ो मीठो पाणी
धन रे समन्दर तूँ
</poem>
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