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सबद / नीलम पारीक

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<poem>
कद लाग्या सीखण
एक एक ध्वनि स्यूं
एक एक आखर होतां
एक एक सबद...
पर कद सीख्यो..?
के बोलणो..?
कद बोलणो..?
किंया बोलणो..?
अर कुण स्यूं बोलणो..?
क्यूँ के सीख्यो ई कोनी
के सबद ब्रह्म है,
अजर-अमर,
मुंह स्यूं निकल्या
फ़ैल जावे
सकल ब्रम्हांड में,
अर पाछे
फिर-घिर आ जावे
सागी जिंग्या
</poem>
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