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पतंग / नीलम पारीक

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<poem>
मन रे चरखे पर
भावनावां री रँगराती रुई री
कंवळाइ स्यूं बणा बणा पूनीयां
नित कातीजे प्रीत रो
काचो सूत
मींयो मींयो
सांसा रे ताने-बाने बुणीजे
लाल, गुलाबी,हरी, पीली चूनड़ी
सुपणे रे आकास स्यूं तोड़
टाँकीजे झिल-मिल तारा
हेत रे रेसम स्यूं
काढीजे फूल-पतियाँ
पे'र-ओढ़ प्रीत बावरी
नित जोवे प्रीतम री बाट
जो सात समन्दरा पार
बैठ्यो हेत बिसार
कांई ठा कद बावड़सी
प्रीत बावरी कद जाणे
बस नित काते
मन रे चरखे पर
भावनावां री रँगराती रुई
</poem>
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