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{{KKRachna
|रचनाकार=जंगवीर सिंह 'राकेश'
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<poem>
ग़ज़ल से रूठना महँगा पड़ा है;
ये कमरा काटने को दौड़ता है;

वो लड़की भोली सूरत वाली लड़की
अमां! वो शहर भर का मुद्द'आ है;

तुम्हारी पलकों पे ठहरा है कोई;
जो अंदर देखता है; झाँकता है;

वही इक शख़्स मेरी मंज़िलें भी;
वही इक शख़्स मेरा रास्ता है;

लहू रोता है मेरी आँखों से वो;
मेरी आँखों में जो ठहरा हुआ है;

मेरा मक़सद तुम्हें पाना नहीं है;
मेरा मक़सद मुहब्बत बाँटना है;

किसे समझा रहे हो पगले लड़के;
वो सब कुछ पहले ही से जानता है;

</poem>