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ड्रामा / विनय मिश्र

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<poem>
एक नया ड्रामा शुरू हो गया है
कालिदास की चमचमाती कलम
शेक्सपियर चुरा कर ले भागे हैं
और
उपनिषदों के घृत से
पश्चिम को
विचारों का आँव हो गया है
निन्यानबे के चक्कर में
एक शहरी महाजन ने
मंदिर की छत से कूदकर
आत्महत्या कर ली है
और सुखों की जगह
जनता बेचारी की किस्मत में अकस्मात् अंतहीन कष्टों की
लॉटरी लग गई है
ले देकर एक वर्तमान ही
वो जगह है
जहांँ वो कुछ देर टिक सकती है
वर्ना
उसके पीछे
भूत का कुआंँ
और आगे
भविष्य की खाई है
हांँ, उसे इतनी सुविधा तो है कि
वह चाहे तो सामने की घटनाओं से
आंँख मूंँद सकती है
और बड़े मजे से
दिन-रात
इंटरनेट पर
पोर्न फिल्में देख सकती है ।
</poem>
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