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रातों के पहरे में भी
दिन गाता सा रे गा मा

चाहों और उछाहों के हैं
बजते रहे मजीरे
हवा लहककर चैती गाती
सरजू जी के तीरे
जैसे राम अवध को लौटे
लौटें सबके रामा

गुझिया खुरमे सेब मूंँगफली
साथ भुनी वो यादें
अक्सर मन के होली होते
आ करतीं फरियादें
झट बांँसों के झुरमुट से तब
निकले चंदा मामा

दौड़ लगाती पगडंडी पर
पसरी मटर निराली
चना और सरसों मस्ती में
खूब बजाएँ ताली
हर सुख-दुख बजरंगबली ने
नाक फुलाए थामा
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