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क्षणिकाएं / कुमार मुकुल
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06:34, 8 जुलाई 2019
पत्थर है वो
उसी ने सांसें
रोक
संभाल
रक्खी हैं।
पत्थरदिली से
वाकिफ हूँ
हाँ, मेरी शख्सियत भी
दूब है।
</poem>
Kumar mukul
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