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रामफलमोहल्ले की औरतेंगली के अगले मोड़ परएक भीड़ बन करखड़ी हैं...........सरकार के पीछे भाग रहा हैगले में सरकारी पट्टा लटकायेसरकारें कहाँ मुड़ती हैंपीछे/उसे देखने के लिए.हमारे मोहल्ले की औरतें..........।
आज तक बेदख़ल हैमिलती हैं जब भी भूलती नहीं हैं/अपनी ज़मीन से जताना ‘अपनापन‘जो उसकी होकर भीबात-बात में खबर देती हैंउसी अनुपात में/उसकी नहीं हैखबर लेती भी हैंताने भी मारती हैं, तो ‘मिसरी‘ की मिठास सी,हर दंद में, हर फंद मेंएक रंग हैं, ये ऽऽ......मोहल्ले की औरतें....।।पट्टा तो सरकारी प्रतियोगी भाव लिये मिला है, पाँच बीघे का अन्दर से टीसती हैंकाबिज़ होने की पर सहज बनीं/ऐसी मुस्कराती हैंजद्दोजेहद जारी सूप तो सूप है अब तक दस साल से ऊपरचलनी को भी छलनी कर जाती हैंका समय निकल चुका हैखाते-पीते घरों की/हट्टी-कट्टी औरतें पानी सर के ऊपरपल्लू सरका कर/बह चुका हैबाहें दिखाती हैंइसी बीच सरकारें आईं हर गली-हर मोड़ परऔर गईं नुमाइश बन जाती हैं ।ऊँचे- ऊँचे ओहदों वाले मर्दो पर उसकी फाइल/और कब्जे की अप्लीकेशनझूठी शान बननहीं चली तो नहीं चलीयहाँ-वहाँ जहाँ-तहाँ तितलियों सी इतराती हैं, ये ऽ..........।सरकारें कहाँ क्या करतीं हैमुहल्ले की औरतें........।।
वह विबस हैअखबारों से/परबश हैकम ही रिश्ता इनका होता ठकुराने/वभनाने पुरवासे त्रस्त हैटीवी पर हर शो..........सीरियल इनमें से ही कुछ की कहाँ छूटता दबगई ही समाचार से डर लगता है-।उसमें कहाँ/किकौन-सा रस मिलता हैकब्जे से वह वेदख़ल ‘गोधरा काण्ड‘ की सच्चाई का कहाँ पता है‘नंदी ग्राम‘ में किसका बेटा.......ठाकुर पुरवा से मदद किसका पति हैं कत्ल हुआ माँगने जब जाता है ‘देव प्रयाग‘ में कहाँ गिरी हरपर्वत-घर खाईं में गुहार लगाता हैअपनी फरियाद लियेबस में कितने मरें तो वाभन पुरवा नाराज़गी दिखाता हैकौन जनावें.......क्यों जानेंगी पिस रहा है/इन्हीं के बीच ‘निठारी काण्ड‘ पर क्षण भर ही तब धूमहतप्रभ होती हैं.....।पढ़ी-फिर बात अड़ती हैलिखी हैंआ विरादरी कीपंचायत बीच/कहाँ क्या तय हो पाता हैकईखूब-कई बारखूब अच्छी हैंतो बैठी बस-थोड़ी सी ‘गड़बड़‘ है पंचायतपर अपनों के बीच मेंअपने तक ही ‘सोच‘ लिएवह हर बार खुद कोसंघर्षों से डरती हैंदुबिधाग्रस्त पाता हैपर फिर भी अच्छी ही हैं, ऽऽऽ....ये मोहल्ले की औरतें.......।।।
क्योंकि.....सासू माँओं पर.........भटक जाती है पंचायत खर्चे की, पाई-पाई/जोड़ लगातींखुद व खुद जेनुइन मुद्दों अपने बच्चों की खातिर झूठ बोलतीं-ताना सुनतींकोल्ड ड्रिंक सेफास्ट फूड तक सरक जाते हैं मुद्दे इनकी इच्छा पूरी करतींदूसरे औरों के बच्चों/की ओर धीरेब्रिलियंसी पर अक्सर चिढ़-धीरे चिढ़ जातीं बहस में आ जाती हैं/औरतेंसरकने लगती है जुबान अन्दर-अन्दर रोती रहतीं बड़ेये गठियाँ, बूढ़ेवो गर्दनभारी कूल्हों का दर्द झेलतीं कथा सुनतीं-बूढ़ों कीपूजा करतीं ‘लच्छमनियाँ‘ के लच्छन कलश उठातींअच्छे दिखते नहीं है इधरगहने खरीदती/महँगे सोफा-बेड़ बनवातीं बाल कटातीं/मेकप करतीं भिखमंगों को दुरियाती........।उधर ‘राम पियारी‘ घर-घर की खाट बातें करतीं खड़ी करने परमहगाँई का रोना रोतीं/तुल जाती है पंचायत फिर भीभगा कर लाया है/राम लवटन का बेटामस्त-मस्त रहती हैं, ये ऽऽ........उसेमोहल्ले की औरतें.........जाने कहाँ ।।इन्हें ‘इनके‘ नामों सेकुजात को घर में/रखा है।जानने की जरूरत नहीं होती विरादरी का सत्यानाशये हर वक्त फलां की मम्मी,कर रहा है नालायक बिना भात दिये/हुक्का पानी पिलाये.फलां की वीवी, फलां की आन्टी......इतनी बड़ी हिम्मतबन कर रहतीं हमारी छाती पर/मूँग दल रहा है।सरपंच बाबूकी मूँछे अचानक/ताव खा जाती हैंचेहरा अंगारे सा/चमक उठता हैलच्छमनियाँ के बगल बैठने को मन करता है-।कोई न कोई/बहाना चाहते है सरपंच बाबू दूर से घेरना शुरू करती है पंचायत राम लवटन कोस्वेटर बुनती...........।‘गाँव की इज्जत पर पानी/न डालो भाईसीरियल देखतीं........। ऐसी छम्मकअध्दी-छल्लो बहूकट्टी इनको भाती तेरे नालायक बेटे फैशन के हर नाजुक कपड़े पासकड़ी ठन्ड में उसे पहनतींबहू-बेटियों औ‘ बेटों की हर अन्दरूनी बात छुपातींगिरती-पड़ती/कहाँ चलती चलतींकब्ज बात की शिकार होतीहरदम पस्त पस्त रहती महरिन से आईदुगुना काम करातींकिसी तरह काम निपटाती, ये ऽ ऽ....मोहल्ले की औरतें......।
बहक गई है पंचायत...........।कोई बबुआइना, कोई सहिबाइनरामफल.......।कोई ‘ये‘ जी, कोई ‘वो‘ जीसरपंच बाबू को आदर सूचक शब्द लगा कर फिर बड़े प्यार से खींचता चाहता हैबतियाती हैंअपनी जमीन की तरफ कैसे और कब कब्जा पायेगा वह........।वह जानता हैसरपंच बाबू विरादरी के पर चर्चा में शामिल होते हुए भी बैठकी देते हैं/हर साँझऔरों के बच्चे-बच्ची हीठाकुर पुरवा में ‘अपना तो कभी वाभन पुरवा में।चौपालों में‘अच्छा ही है/चल जाती हैं दारू अच्छा ही होगा‘ बोतलें खुल जाती हैं और फिरचर्चा कर्ज में लच्छमनियाँ के साथडूबीं और भी कई युवतियाँउन्हें डाक्टर-इंजीनियर बनातींशामिल हो जाती हैं......। उसकी जवानी और बेफिक्र हँसी...एक साथढ़ंीग हाँकतीं/तेजाब भर देती हैढ़ोल पीटतीगलफड़ों में/और सरपंच बाबू की मूँछों की नोंक अचानक........झूठ बोलतींउनकी उँगुलियों गम में चुभ जाती है। औरडूबी.........रामफलइनके-उनके..............सबके पास हँसती जातींदौड़-दौड़ करपिसती रहतीं हाँफअपनों की खातिर/हर दम- हाँफ करहर पलचकनाचूर हो जाता हैएक क्षण के लिए कौंध जाती है आत्महत्याकी बात........फिर अचानक सँभल जाता हैभी..........। रामफल........न्याय के लिए लड़ना चाहता है ज़िन्दा दिल लगती हैंहक के लिए लड़तेबहुत-लड़ते बहुत अच्छी लगती हैं,वह मर जाना चाहता हैमुक्ति की कामना लिएअन्याय के खि़लाफजड़ होते समाज मेंउसकी जड़ता के खिलाफये ऽ......। दो कदम/आगे बढ़ता हैफिर मुड़ कर पीछे देखता हैतो गाँव के कुछ युवकों का हाथ एक ताकत मोहल्ले की तरह/अपनी ओर उठा हुआ पता है.....।रामफलन्याय की उम्मीद लिएन्यायालय की ओरआगे बढ़ जाता है....औरतें.....।।।
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