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{{KKRachna
|रचनाकार=सुनीता शानू
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
प्रिय बिन जीना,
कैसा जीना
एक पल भी काटे कटे ना।
दो पल की दूरी ने
तन-मन
कुंठित कर डाला।
जो चाहोगे
पी लेंगे हम
आज विरह का ये प्याला।
पनघट सूना
घर भी सूना,
सन्नाटों की डोर कटे ना।
लाख छुपा ले
आँखें फिर भी,
बारिश थमती नही
सदियों से
बसी है जो दिल में,
तस्वीर मिटती नही,
तन से चाहे
दूर रहें पर
मन की मूरत मेटे मिटे न।
पाया साथ
तुम्हारा जबसे,
महक उठा हर कोना।
हुई बावरी
प्रेम पुजारिन
पहनाया जब प्रेम का गहना।
हाथों में अब
रची है मेहंदी ,
रंगत फीकी कभी पड़े न।
</poem>
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|संग्रह=
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<poem>
प्रिय बिन जीना,
कैसा जीना
एक पल भी काटे कटे ना।
दो पल की दूरी ने
तन-मन
कुंठित कर डाला।
जो चाहोगे
पी लेंगे हम
आज विरह का ये प्याला।
पनघट सूना
घर भी सूना,
सन्नाटों की डोर कटे ना।
लाख छुपा ले
आँखें फिर भी,
बारिश थमती नही
सदियों से
बसी है जो दिल में,
तस्वीर मिटती नही,
तन से चाहे
दूर रहें पर
मन की मूरत मेटे मिटे न।
पाया साथ
तुम्हारा जबसे,
महक उठा हर कोना।
हुई बावरी
प्रेम पुजारिन
पहनाया जब प्रेम का गहना।
हाथों में अब
रची है मेहंदी ,
रंगत फीकी कभी पड़े न।
</poem>