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<poem>
पंछी! तुम कैसे गाते हो?
अपने सारे संघर्षों मे तुम-
कैसे गीत सुनाते हो?
जब अपने पंखों को फ़ैला-
तुम आसमान में उड़ते हो।
तब कोई न तुमको रोक सके-
तुम सीधे प्रभु से जुड़ते हो।

पर बोलो-! किस ताकत से तुम
यह इंद्रजाल फैलाते हो?
पंछी ! तुम कैसे गाते हो?

बच्चे राह देखते होंगें-
यह चिंता विह्वल कर देती।
पर उनकी आँखों की आशा
पंखों को चंचल कर देती।
तुम महा विजेता बनकर जब
दाना लेकर घर आते हो।

पंछी ! तुम कैसे गाते हो?
अपने सारे विद्रूपों में-
जीने की ऎसी अभिलाषा!
पीड़ा के महायुद्ध में भी
माधुर्यमयी ऎसी भाषा
पंछी तुम छोटे हो कर भी-
जीवन का सार बताते हो।
पंछी-! तुम कैसे गाते हो?
</poem>
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