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|रचनाकार=सुनीता शानू
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फेंक कर पत्थर जो मारा
तड़प उठी मौन लहरें
डूबने से डर रहे तुम-
शांत मन की झील में।
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फेंक कर पत्थर जो मारा
तड़प उठी मौन लहरें
डूबने से डर रहे तुम-
शांत मन की झील में।
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