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{{KKRachna
|रचनाकार=सुनीता शानू
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
उषा की आँख मिचौली से थक कर
निशा के दामन से लिपट कर
जब अहसास तुम्हारा होता है
अविरल बहते
आँसू मेरे
मुझसे पूछ्ते हैं
तुम कैसी हो?
श्यामल चादर ओढ़ बदन पर
जो चार पहर मिलते हैं
मेरे मन के एक कोने में
तेरी आहट सुनते हैं
डर-डर कर
रुकती साँसें
मुझसे पूछती हैं
तुम कैसी हो?
तन्हा रात के काले साये पर
जब पद्चाप कोई उभरती है
खोई-खोई पथराई आँखें
राह तेरी जब तकती हैं
हर करवट पर
मेरी आहें
मुझसे पूछती हैं
तुम कैसी हो?
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
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उषा की आँख मिचौली से थक कर
निशा के दामन से लिपट कर
जब अहसास तुम्हारा होता है
अविरल बहते
आँसू मेरे
मुझसे पूछ्ते हैं
तुम कैसी हो?
श्यामल चादर ओढ़ बदन पर
जो चार पहर मिलते हैं
मेरे मन के एक कोने में
तेरी आहट सुनते हैं
डर-डर कर
रुकती साँसें
मुझसे पूछती हैं
तुम कैसी हो?
तन्हा रात के काले साये पर
जब पद्चाप कोई उभरती है
खोई-खोई पथराई आँखें
राह तेरी जब तकती हैं
हर करवट पर
मेरी आहें
मुझसे पूछती हैं
तुम कैसी हो?
</poem>