भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं रूठ पाऊँ / सुनीता शानू

1,308 bytes added, 15:20, 9 जुलाई 2019
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता शानू |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुनीता शानू
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हर रोज-
दिन निकलने के साथ
मेरे पास
होते हैं कई सवाल
तुम्हारे लिये

खोज-खोज कर उन्हें
सहेज लेती हूँ
कि तुम्हारे
कुछ कहने से पहले ही
पूछ लूंगी तुमसे
उन सवालों के जवाब

लेकिन
मेरे कुछ कहने से पहले ही
समझ जाते हो तुम
मेरी हर बात
और बिन कहे
रख देते हो
जवाबों का पुलिंदा
मेरे हाथों में

तुम्हारी मीठी-मीठी
बातों का जादू
समेट देता है मुझे
मेरे शब्दों के साथ
चिपक जाती है जीभ
तालू में

और सोचती हूँ
आखिर झगडा़
किस बात पर हो
कि मै रूठ पाऊँ
और तुम मुझे मनाओ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,148
edits