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{{KKRachna
|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
दूर बसे हो साजन, हृद अंदेश।
भेजो क़ासिद कोई, ले संदेश॥
पावस ऋतु में तन-मन, हुआ मतंग।
डोरहीन ज्यों अम्बर, उड़े पतंग॥
संग पवन के सर-सर, उड़े दुकूल।
सखे प्रणय ऋतु आयी, है अनुकूल॥
नहीं सताये मेरी, क्या सुधि लेश।
भेजो क़ासिद कोई, ले संदेश॥
घटा सुरमई छाये, नभ पर घोर।
तड़प-तड़प कर सुधियाँ, करतीं शोर॥
सावन में है विरहन, गजब अधीर।
नयनों से रिसता है, रह-रह नीर॥
किया दृगों ने नाहक, अश्रु निवेश।
भेजो क़ासिद कोई, ले संदेश॥
शुभ वसंत में मन के, भाव जवान।
कामदेव ने खींची, पुष्प कमान॥
जलते कानन खिलने, लगे पलाश।
विरहन हृद को करते, दृश्य हताश॥
बढ़ता जाता सुधियों, का आवेश।
भेजो क़ासिद कोई, ले संदेश॥
</poem>
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|रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
दूर बसे हो साजन, हृद अंदेश।
भेजो क़ासिद कोई, ले संदेश॥
पावस ऋतु में तन-मन, हुआ मतंग।
डोरहीन ज्यों अम्बर, उड़े पतंग॥
संग पवन के सर-सर, उड़े दुकूल।
सखे प्रणय ऋतु आयी, है अनुकूल॥
नहीं सताये मेरी, क्या सुधि लेश।
भेजो क़ासिद कोई, ले संदेश॥
घटा सुरमई छाये, नभ पर घोर।
तड़प-तड़प कर सुधियाँ, करतीं शोर॥
सावन में है विरहन, गजब अधीर।
नयनों से रिसता है, रह-रह नीर॥
किया दृगों ने नाहक, अश्रु निवेश।
भेजो क़ासिद कोई, ले संदेश॥
शुभ वसंत में मन के, भाव जवान।
कामदेव ने खींची, पुष्प कमान॥
जलते कानन खिलने, लगे पलाश।
विरहन हृद को करते, दृश्य हताश॥
बढ़ता जाता सुधियों, का आवेश।
भेजो क़ासिद कोई, ले संदेश॥
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