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{{KKRachna
|रचनाकार=सुन्दरचन्द ठाकुर
|संग्रह=
}}

यह न सोचिए कि हमें न था मालूम कि मार दिए जाएंगे<br>
प्यार को राह पर छोटे से सफर में ही हम जान गए थे<br>
अपने प्यार की खातिर उठाया हो किसी ने कितना ही जोखिम<br>
दूसरे के प्रेम में सबको खोट नज़र आया है<br><br>

दूसरों का प्रेम अपने शरीर से बहार घटता है<br>
आत्मा से तो कोसों दूर<br><br>

इसलिए जब हमें चारों ओर से घेर लिया गया जैसे किसी आदमखोर बाघ को<br>
उसके सताए गुस्से से भरे लोग घेर लेते हैं आंखों में उन्मादी हिंसा भरे हुए<br>
और हमारे सिरों के ऊपर धारदार कुल्हाड़ी की चमक कौंधी<br>
मृत्यु हमारे लिए दहशत न बन सकी<br>
बल्कि चारों ओर बंद रास्तों के बीच वह बनी अकेली एक खुली राह<br>
जिस पर हमारे साथ चलने पर किसी को कोई एतराज न था<br>
जिस पर हम आगे बढ़े जैसे बढ़ना ही चाहिए सच्चे प्रेमिओं को<br>
उतनी ही बेतकल्लुफी से जैसे डूबते हुए सूरज को देखते हुए<br>
वे बढ़ते हैं समुद्र की गीली रेत पर<br>
मिट जाने को छोड़ते निशान। <br><br>