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{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
|संग्रह=
}}
[[Category: ताँका]]
<poem>
7
पंछी चहकें
आकर नित द्वार
रिश्ता निभाएँ
मुट्ठी भर दाना पा
मधुर गीत गाएँ ।
8
दो बूँद जल
कटोरी का हैं पीते
बैठ मुँडेर
मधुर गीत गाते
शीतल कर जाते ।
9
खूँटी से बँधी
गैया जब रँभाए,
‘दाना -पानी दो’-
सन्देसा पहुँचाए
खुशियाँ बरसाए ।
10
गली का सही
पक्का है चौकीदार
दो टूक खाए
मुहल्ला सोता रहे
इसे नींद न आए ।
11
क़ैद है मैना
सोने के पिंजरे में
भूली है गीत
बिसुरे दिन रात
याद आए जो मीत ।
12
जीवन-रस
छनकरके बहा
बाकी क्या रहा-
केवल तलछ्ट
ईर्ष्या , छल-कपट ।
</poem>