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निकली मुँह से भी
चूकते नहीं वार।
65
'''सांध्य गगन'''
'''या उतरा आँगन'''
'''कुसुमित यौवन,'''
'''रूप तुम्हारा'''
'''बहता छल-छल'''
'''ज्यों निर्झर चंचल'''।
66
अधर खिले
पिया मदिर मधु
जगे जड़-चेतन,
अँगड़ाई ले
बहा मन्द पवन
सिंचित तन-मन।
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