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ख़ुद को ढूँढना / वीरेन डंगवाल
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11:21, 20 सितम्बर 2019
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एक
शीतोष्ण
शीतोष्ण
हँसी में
जो आती गोया
पहाड़ों के पार से
सीधे कानों फिर इन
शब्दों
शब्दों
में
ढूँढना ख़ुद को
ख़ुद की परछाई में
एक न लिए गए
चुम्बन
चुम्बन
मेंअपराध की तरह
ढूँढना
ढूँढ़ना
चुपचाप गुज़रो इधर से
अनिल जनविजय
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