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Kavita Kosh से
मेरा मन कब तक इस दलदल में रह पाएगा ?
जहाँ भी मुड़ता हूँ, जहाँ भी मैं देखता हूँ, मैं देखता हूँ
अपने जीवन के खंडहर खण्डहर ही ! —
जहाँ मैंने बिताए और उनमें पैबन्द लगाए और व्यर्थ में गँवाए इतने सारे वर्ष !’’
तुम्हें वहाँ नहीं ले जा सकता !
जिस तरह तुमने अपने जीवन को नष्ट कर दिया इस मामूली कोने में,
वैसे ही तुमने उसे नष्ट कर दिया पृथ्वी पर हर जगह!
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : आग्नेय'''