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ये शामें, सब की सब शामें...
जिनमें मैंने घबरा कर तुमको याद किया
जिनमें प्यासी सीपी-सा भटका विकल हिया
ये शामें
क्या इनका कोई अर्थ नहीं?
 वे लमहें लम्हेवे सूनेपन के लमहें लम्हेजब मैनें मैंने अपनी परछाई से बातें की
दुख से वे सारी वीणाएं फेकीं
जिनमें अब कोई भी स्वर न रहे
वे लमहें लम्हे
क्या इनका कोई अर्थ नहीं?
 
वे घड़ियां, वे बेहद भारी-भारी घड़ियां
जब मुझको फिर एहसास हुआ
वे घड़ियां
क्या इनका कोई अर्थ नहीं?
 
ये घड़ियां, ये शामें, ये लमहें
जो मन पर कोहरे से जमे रहे
निर्मित होने के क्रम में
क्या इनका कोई अर्थ नहीं?
 
जाने क्यों कोई मुझसे कहता
मन में कुछ ऐसा भी रहता
इनमें से क्या है
जिनका कोई अर्थ नहीं!
 
कुछ भी तो व्यर्थ नहीं!
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