भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKCatGhazal}}
<poem>
मुझे तेरा कब आशियाना मिलेगा?
किसी और का ही ठिकाना मिलेगा।
सभी कुछ मिलेगा मगर ये हक़ीक़त,
किसी को न गुज़रा ज़माना मिलेगा।
 
करो गुफ़्तगू तो मिरे पास आकर,
तुम्हें रूठने को बहाना मिलेगा।
 
जिसे पढ़ के अश्कों की बरसात होगी,
मुझे दर्द का वो फ़साना मिलेगा।
 
वो दामन को अपने सँभाले तो कैसे?
ये मौसिम कहाँ आशिक़ाना मिलेगा।
जिसे लूटने की वो ख़्वाहिश रखेंगे,
उन्हें क्या कहीं वो ख़ज़ाना मिलेगा।
 
जिसे सुन के दिल ख़ून रोएगा पैहम,
वो क्या ‘नूर’ क़िस्सा यगाना मिलेगा?
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits