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|रचनाकार= कुमार मुकुल
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आराम के
जूतम-पैजार में लगे लोगों
देखो तो - इधर फुटपाथ के पिलर से लगकर
कैसे 'घुघुआ माना' खेल रही है खुशी
अपने भाषायी हथियार
पावों में डाल इधर आओ
इनकी बलैयां लो।
</poem>
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|रचनाकार= कुमार मुकुल
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आराम के
जूतम-पैजार में लगे लोगों
देखो तो - इधर फुटपाथ के पिलर से लगकर
कैसे 'घुघुआ माना' खेल रही है खुशी
अपने भाषायी हथियार
पावों में डाल इधर आओ
इनकी बलैयां लो।
</poem>