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अनुरोध / प्रताप नारायण सिंह

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|रचनाकार=प्रताप नारायण सिंह
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|संग्रह=छंद-मुक्त/ प्रताप नारायण सिंह
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<poem>

हे कृष्ण!
तुम्हारी गीता सच है;
प्रदीप्त सर्वकालिक ज्ञान-पुंज है ।
लेकिन
उसे सुनने वाला एक विशिष्ट महायोद्धा था।
उन सैनिको का क्या
जो कतारों में शस्त्र लेकर खड़े थे ?
जिनमें ज्ञान की प्रचुरता नहीं
भावनाओं की अधिकता थी
अपनी मातृभूमि के प्रति,
अपने राजा प्रति।

देखो
आज भी खड़े हैं
कितने ही योद्धा
जीवन के इस महासमर में!
लड़ रहे हैं
अपने अस्तित्व के लिए
अपने सम्मान के लिए ।

महाभारत में तो
दुर्योधन और शकुनि
असली चेहरे वाले थे।
आज
धर्मराज और विदुर भी छद्मवेशी हैं;
कब मुखौटा बदल लेंगे
तुम्हें भी पता नहीं चलेगा।

कहो ,
ऐसे में क्या करें ये योद्धा ?
कैसे ख़त्म होगी यह महाभारत ?
कैसे होगा सत्य विजयी?
अकेला अर्जुन भी क्या कर लेगा?

हे प्रभु !
उतार दो न एक बार
इन साधारण योद्धाओं के अंदर
अपनी गीता,
और बना दो इन सबको अर्जुन।
विजयी हो जाने दो न
सत्य को एक बार फिर।
</poem>