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|रचनाकार=प्रताप नारायण सिंह
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|संग्रह=छंद-बद्ध/ प्रताप नारायण सिंह
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<poem>
प्राण प्रिये जब तुम आओगी,
सपने सब सच हो जाएँगे।

कब से बाट जोहते अपने, झूले को बाँधूँगा फिर से।
बौर लिए मदमाते सुरभित, आम्र-शाख के उच्च शिखर से।

बादल की उजली डलियों को,
पेंग बढ़ाकर छू आएँगे।
प्राण प्रिये जब तुम आओगी,
सपने सब सच हो जाएँगे।

कब से पड़ी उपेक्षित अपनी, वीणा के टूटे तारों को।
पुनः कसूँगा, जीवन फिर से, मिल जाएगा झंकारों को।

गूँजेगी स्वर लहरी अँगना,
बोल तुम्हारे जब छाएँगे।
प्राण प्रिये जब तुम आओगी,
सपने सब सच हो जाएँगे।

चिर-लंबित अपनी नौका पर, पाल सुनहरे मैं बाँधूँगा।
चंचल जल पर संग तुम्हारे, मैं पतवार पुनः साधूँगा।

संग संग चंदा-किरनों के
परी-देश हम हो आएँगे।
प्राण प्रिये जब तुम आओगी,
सपने सब सच हो जाएँगे।
</poem>