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<poem>
ज़द गाम में बरसे
आषाढ़ रो पैलो मेह
ठीक उण बखत इज़ याद आवे
म्हैने म्हारो बाळपणो,
ठीक उणीज बखत
म्हैें चीतारूं दिखणादे धोरै नै
जकौ म्हारे साथै मोटो होयौ
म्हैं याद करूं धोरे माथे बणायडे
मिट्टी रे कच्चे घरां नै
अर म्हारै मूंगा बेलियां नै!
म्हूं याद करूँ मै रे मामै नै
जकै रो कंवळो परस हुया करेै
प्रेमिका रै पैलै परस ज्यूं!
</poem>
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