भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
तेरी याद आ रही थी, मुझे भरमा रही थी ।
मुरमेलोन के पास था मैं, यह है था वह इलाका
जहाँ विरह में मधुपान कर, मुझ जैसा छैला-बाँका
गोलाबारी से घिरा हैथा, झेले गोलों का धमाका
ओ लू ! तू अशुभ है, अमंगल, नज़र तेरी भोली
मुझे बेध रही है थी ऐसे, ज्यों सीसे की कोई गोली ।
'''रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''
</poem>
{{KKMeaning}}