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महताऊ कवि / राजेन्द्र देथा

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<poem>
सुण!
बखत रा महताऊ कवियां
या तो चौराऐ माथै
बिलखतां ढब्बू लियोडा़ं
टाबरां माथै हिंयों भरणियां
आखर लिख'र
कविता बणाणी छोड़ द्यौ
अर नींतर आथण रै
कवि-जलसै सूं
निकलतां थकां
रामबाग चौराए माथै
आपरी कार रा शीशा
खोल दिया करौ।
</poem>
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