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थारेष्णा / राजेन्द्र देथा

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थार महकता भी
उससे जियादा वो दहकता
यहां आँधियों के भूतालिए
कर देते हरेक को भूत सा
वे किसी चक्रवात से आते
और उजाड़ जाते खेत को
भला थार का जीवट इंसान
कहाँ डरता ऐसे मामूली तूफानों से
"जीवट इंसां" शब्द किस की दी हुई
उपमा नहीं थी
स्वयं शब्द ने संघर्ष कर
खुद को सृजित किया था।
इन दिनों थली में अकाल सा पड़ा है
नहरी इलाका बच गया
इसका मतलब यह थोड़े ही कि
बैरानी उजड़ जाएंगे
ऐसे छुटपुट अकालों से।
वह कभी नहीं डरेगा
वह कभी नहीं डगमगाएगा।
यदि कभी डरा तो डरेगा उस वक्त
जब उसे आटा लाने के लिए
जाना पड़ेगा, सड़क पार उस बनिए के घर।
शायद इसीलिए थार का भला मानुष
इन दिनों पलायन कर गया है मद्रास
और कह गया कि-
आते वक्त लाऊंगा पैसों की भरी करके
इतने कि उनसे खरीद सकूंगा
टाबरो के लिए कपड़े-लते और
माँ के लिए छ: फोटो नश्वार!
</poem>
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