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Kavita Kosh से
आओ !
हम अपनी पिछली सभी यात्राओं को भूल जाएँ.जाएँ।
भूल जाएँ
जिनमें बहते हुए जलदीप
हमारी कविताओं में जगमगाते हैं.हैं।
और उन सभी गीतों को
जो हमने शांत नदियों की यात्राओं के दौरान
घर लौटते जल-पक्षियों से सीखे थे.थे।
जिसमे कभी किसी ने कोई
घर लौटता जल-पक्षी नहीं देखा.देखा।
अपनी जेबों में कविताओं की जगह
सामरिक युक्तियाँ भर लो.लो।
हाँ मैं, मैं ठीक कहता हूँ
बिफरी हुई खूंखार नदी का अंध वेग
एक फौजी शासन की ताकत ताक़त के समान होता है.है।
कविताएँ तो केवल शांत नदियों को बांध सकती हैं
खूनी नदियों को बाँधने बांधने के लिए
युक्तियों की ज़रूरत है.है।
साथियो !
इस नदी को बाँधने बांधने के लिए,
हम इसके मुहाने तक पहुँचेंगे
और उस चट्टान को बारूद से उड़ा देंगे
जिसमें से इसकी पहली धारा निकलती है.है।
किंतु यह कोई ज़रूरी नहीं कि हम—
पहली बार ही उस चट्टान तक पहुँच जाएँगेजाएंगे
या नदी के नरभक्षी जलचरों से
बच के निकल पाएँगेपाएंगे
या अपनी टूटी नौकाओं के साथ
कभी लौट भी आएँगे.आएंगे।
कभी किसी ने कोई
घर लौटता जल-पक्षी नहीं देखा.देखा।