Changes

विपाशा / कुमार विकल

7 bytes added, 04:29, 26 अगस्त 2008
मैं सोचता हूँ,
शायद ही मेरी कोई कविता सहेज पाए.पाए।
तवायफ़ों के पवित्र चेहरों पर
धुँधले धुंधले चिराग़ों की रोशनी में देखा था
या लुधियाना के बूढ़े दरिया की झुर्रियों में बहती
मैं रात—रात भर
उस शहर की सजल सड़कों पर भटका था.था।
बरीमास बहुत पीछे रह गया है
और उस सिरफिरे शायर की बकवास बातें भूल जाएँ
जो विपाशा को एक सूख गए जल-संसार का धुँधलाधुंधला-सा बिम्ब कहता है.’है।’
हाँ मैं यह भी अनुरोध करता हूँ
सिरफिरे शायर का उत्तर भूल जाएँ
और अपने होंठ बिल्कुल मत हिलाएँ.हिलाएँ।
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,379
edits