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Kavita Kosh से
रात की अंतिम क्रिया तक
मेरी दिनचर्या में लगभग दनदनाता है.है।
कि बायें मत चलो
सड़क के बीच में साइकिल चलाना ही सुरक्षित है.है।
मगर मैं जन्म से बायाँ—
बायें हाथ से जीवन के सारे काम करता हूँ
और बायें ही किनारे आज तक साइकिल को चलाया है.है।
यह संभव है,बिना अभ्यास के मैं जब कभी सड़क के बीच में साइकिल चलाउँगाचलाऊंगा,
किसी फौजी गाड़ी के तले कुचला जाऊँगा.जाऊंगा।
साधारण आदमी के क़त्ल की साज़िश बनाता है
मगर मातम-सभाओं में झूठे आँसू बहाता है.है।
मगर मैं अपने कत्ल से डरता हूँ
और खामोश रहता हूँ.हूँ।
:::मगर कोई तो बोलेगा.बोलेगा।
भयानक मौत के जंगल का सन्नाटा कोई तो तोड़ेगा
:::जो अपने होंठ खोलेगा.खोलेगा।
आदमी के होंठ जब लंबे समय तक बंद रहते हैं
तो ऐसा वक़्त आता है
कि अपने दाँत दाँतों से वह अपने होंठ काट खाता है.है।
घायल होंठ का वह दर्द तब निश्चय ही बोलेगा—
कि पूरी आदमियत से कोई ऐसी बात घट जाए
कि जिससे आदमी का बायाँ हाथ ही कट जाए.जाए।