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फिकर रा रतजगा / पूनम चंद गोदारा

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<poem>
उमर रै साथै
फिकर आंख्या मांय
करण लागजै
रतजगौ

रात री दूसरी घड़ी
जद आखौ घर
सुत्यौ हुवै निधड़क नींद

पिता रै कमरै स्यूं
नींद रै खरड़का साथै
साफ सुणीजै
कंठा में बाजता कम्फ

मां रै सिरा'णै
धांसी री दवाई री सीसी
निवड़ती दिखै
जद मां रात'नै
धांसी'र उकराड़ा करै

टाबर नींदां मांय
प्रगट करै आपरै मन री
ईच्छावां

म्है दोनूं धणी
फिकर ऱी धुईं माथै बैठ्या
आखी रात
जौवां अेक-दूजै रौ मूंडौ
</poem>
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