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Kavita Kosh से
क्या पाया
सुख-दु:ख सब कह डाला
यह कैसी दूरी
केसी मेरी मजबूरीमज़बूरी
देख रहा हूँ
छू सकता हूँ
आँखों ही आँखों तुझको तुझ को पी सकता हूँ
सुख पाता हूँ
मुझे नियति ने क्यों इतना असहाय बनाया
क्या पाया यदि मैंने तुझसे तुझ से नेह लगाया?
संग-संग कितने दिवस बिताए
सुख-दु:ख के अनगिनती चित्र बनाए रँगरंग-रँगरंग
आह ! दु:ख की एक मार ने
क्या पाया , यदि मैंने तुझसे नेह लगाया ?