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दीनानाथ सुमित्र / एस. मनोज

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दीनों के तुम नाथ हो दादा
जीवन बिल्कुल सीधा सादा
बच्चे बूढ़े सब के मित्र
इसीलिए तो नाम सुमित्र

ऐसा तुम अवतार लिए हो
साहित्य का जय जयकार किए हो
काव्य जगत में जीवन चमके
गमके जैसे फूल और इत्र
इसीलिए तो नाम सुमित्र

सृजन कर्म को बढ़ा रहे हो
साहित्य चेतना जगा रहे हो
मंझौल से लेकर विकास विद्यालय तक
कर्म हैं तेरे सभी पवित्र
इसीलिए तो नाम सुमित्र

गीतों में तुम साज दिए हो
गजलों में आवाज दिए हो
गीत गजल मुक्तक हैं तेरे
सबके शब्द से बनते चित्र
इसीलिए तो नाम सुमित्र

गीत गजल जीवन के अंग
फाकाकसी न छोड़े संग
ग़ज़ल हजारों की रचना की
छपी न पुस्तक बात विचित्र
कैसे हम सब इनके मित्र
लेकिन फिर भी नाम सुमित्र।
</poem>
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