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दर्द में बेटियाँ / एस. मनोज

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दर्द में हैं बेटियाँ फिर मुंह तो खोलो
सर्द सी हैं बेटियाँ कुछ भी तो बोलो

खौफ में हैं बेटियाँ यह जश्न कैसा
घुट रही हैं बेटियाँ यह वतन कैसा

आजादी का जश्न मनता जा रहा है
आधा हिस्सा भय में पलता आ रहा है

आओ मिलकर हम बढ़ें सुंदर जहां के वास्ते
सुंदर जहां के वास्ते संघर्ष के ही रास्ते
</poem>
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