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वेश्या जीवन / एस. मनोज

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नेपाली का जन्म दिवस यहसाहित्य का त्योहार वैश्वीकरण में बदल रही हैदुनियानेपाली का जीवन सारारोज रोजजन-जन को उपहार लेकिन मेरे लिए ?ठहरी हुई हैयहमैं दिन के उजाले मेंबन कविता तुम प्राण फूंकतेरहे सदा प्रहरी बनकरसमाज से बहिष्कृतरेल बहादुर आजीविका के घर खुशियांलिए मोहताजआई थी खुद अछूतों से चलकरभी अछूत।दिन में जो मुंह चिढ़ातेप्रकृति प्रेम की कविता तेरीरात में वही तलवे सहलातेजीवन के संग्राम कीयह सब तब भी थाहमें जगाती नित नित गातीआज भी हैमानव के कल्याण कीलेकिनवैश्वीकरण ने बदली है सोचरोटियों के प्रश्न उठातीतब लोग आते थे मेरे पाससमता राह दिखाती हैरहते नहीं थे मेरे साथझोपड़ियों में पड़े बेबसोंअब बहुत सारे घन पशुका भी भाग्य सजाती हैआते हैं मेरे पासले जाते हैं किसी गुप्ता आवासकानन बनाते हैं कई कईअबलाओं को वेश्यातब मेरा घर थागांव के पीपल के जैसासीमान परबनेगा हो तुम अटल अचलअब मेरा घर हैचंपा अरण्य की खुशबू महकेऐसे ही कईसुरभित हो पूरा अंचलधन पशुओं के ठिकानों परवैश्वीकरण ने बनाए हैंआओ सीखे कवित्त छंद औरनये-नये वेश्यालयनैतिकता का पाठ भीकई उत्तर आधुनिकतावादी के घर कोसाहित्य चेतना मनुज चेतनालेकिन नहीं बदल सका है वहदोनों हो एक साथ ही।हम वेश्याओं के जीवन को
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