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{{KKRachna
|रचनाकार=मुन्ना पाण्डेय 'बनारसी'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
गइया मिली दहेज़ में, भइया के ससुराल।
घर वाले सब मस्त थे, मिला मुफ़्त का माल।
मिला मुफ़्त का माल, दूध की भागे कड़की।
अम्माजी के साथ, मगन थी भउजी बड़की।
कहें मुन्ना कविराय, पड़ोसी देंय बधइया।
भाग्यवान है बहू, साथ में लाइ गइया॥
बाबूजी सहला रहे, गौ माता की देह।
अम्माजी की आँख से, छलक रहे थे नेह॥
छलक रहे थे नेह, मगाया दाना भूसा।
चाँप गयी दो नाद, ठसाठस ठूसम ठूसा।
कहें मुन्ना कविराय, हुआ गम बेकाबू जी।
दूध दिया दो पाव, सन्न हो गै बाबूजी॥
</poem>
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गइया मिली दहेज़ में, भइया के ससुराल।
घर वाले सब मस्त थे, मिला मुफ़्त का माल।
मिला मुफ़्त का माल, दूध की भागे कड़की।
अम्माजी के साथ, मगन थी भउजी बड़की।
कहें मुन्ना कविराय, पड़ोसी देंय बधइया।
भाग्यवान है बहू, साथ में लाइ गइया॥
बाबूजी सहला रहे, गौ माता की देह।
अम्माजी की आँख से, छलक रहे थे नेह॥
छलक रहे थे नेह, मगाया दाना भूसा।
चाँप गयी दो नाद, ठसाठस ठूसम ठूसा।
कहें मुन्ना कविराय, हुआ गम बेकाबू जी।
दूध दिया दो पाव, सन्न हो गै बाबूजी॥
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