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सागर में मिलतीं
सरिता जैसे।
187
जीवन क्रूर
दुःख गलियों घूमें
सुख थे दूर।
188
आरोप लाखों
मंजूर सब किए
झूठे थे सारे।
189
दर्द लिपटे
बाहर व भीतर
जीना दूभर।
190
अंधों ने दिया
दर्पण टूटा हुआ
रूप न दिखा।
191
जाएँगे कहाँ
न घर, न है द्वार
सूना संसार।
192
देवता जन्मा
असुर बना डाला
धन्य हैं लोग।( 23-12-19)
193
चाय की प्याली
कैसे अधर धरूँ मै
है कोसों दूर
-0-15-12-2019
 
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