भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जय-बेला / महेन्द्र भटनागर

591 bytes added, 18:32, 28 अगस्त 2008
New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर }} <poem> व...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>

विषाद की नहीं क़यामती-निशा,
न डर कि हिल रही है हर दिशा!
उफ़न रहा समुद्र क्रुद्ध हो,
हरेक व्यक्ति बस प्रबुद्ध हो !
दवारि, साथ लो नवीन जल,
दलिद्र है सभी पुराण बल !
1945
Anonymous user