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{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:
:अब न रहा जाता !
:प्रिय दूभर जीना ;
:मूक हृदय-वीणा,
:आघात समय का
::अब न सहा जाता !
:::
:करुण कथा कितनी,
:गरल व्यथा कितनी,
:लय में छंदों में
::अब न कहा जाता !
:::
:जीवित नेह कहाँ ?
:सुन्दर गेह कहाँ ?
:मन दुख-सरिता में
::अब न नहा पाता !
:::
:हैं मौन सुखद स्वर,
:जीवन शांत लहर,
:बीहड़ पथ से रे
::अब न बहा जाता !
:1945
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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:
:अब न रहा जाता !
:प्रिय दूभर जीना ;
:मूक हृदय-वीणा,
:आघात समय का
::अब न सहा जाता !
:::
:करुण कथा कितनी,
:गरल व्यथा कितनी,
:लय में छंदों में
::अब न कहा जाता !
:::
:जीवित नेह कहाँ ?
:सुन्दर गेह कहाँ ?
:मन दुख-सरिता में
::अब न नहा पाता !
:::
:हैं मौन सुखद स्वर,
:जीवन शांत लहर,
:बीहड़ पथ से रे
::अब न बहा जाता !
:1945
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