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नवयुग / महेन्द्र भटनागर

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रेशमी युगीन-तार हैं नये-नये !
ज़िन्दगी नयी
अकाम भाव बह गये !

समाज से विलीन हो रही है पीर,
कंटका-विहीन हो रहा करीर

डाल-डाल स्वस्थ गुदगुदी
शुष्कता हृदय से हो चुकी जुदी !

देव-देव आज व्यक्ति हर
कर गया निडर निनार पान विष प्रखर !
यातुधान है वही कि जो
ज़रा अड़ा, ज़रा लड़ा
आग देखकर भगा, डरा....

है विदीर्ण अब प्रमाद
क्योंकि बन गया नवीन !
व्यर्थ आज उस मनुष्य का प्रयास
गर्व की पुकार
व्यर्थ, व्यर्थ, व्यर्थ !
1945
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