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18:48, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:उड़ रही है धूल !
:उड़ रही है, धूल !
::डालियों में आज
::खिल रहे हैं फूल !
::खिल रहे हैं फूल !
:झर रहे हैं पात,
:भर रहे हैं पात,
:आज दोनों बात !
::आ रहा ऋतुराज
::सृष्टि का करता हुआ
::फिर से नया ही साज !
:पिघला बर्फ़
:नदियों के बढ़े हैं कूल !
:उड़ रही है धूल !
1949