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18:49, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:री हवा !
:गीत गाती आ,
:सनसनाती आ ;
:डालियाँ झकझोरती
:रज को उड़ाती आ !
:मोहक गंध से भर
:प्राण पुरवैया
:दूर उस पर्वत-शिखा से
:कूदती आ जा !
:ओ हवा !
:उन्मादिनी यौवन भरी
:नूतन हरी इन पत्तियों को
:चूमती आ जा !
:गुनगुनाती आ,
:मेघ के टुकड़े लुटाती आ !
:मत्त बेसुध मन
:मत्त बेसुध तन !
:खिलखिलाती, रसमयी,
:जीवनमयी
:उर-तार झंकृत
:नृत्य करती आ !
:री हवा !
:1949