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मेघों से / महेन्द्र भटनागर

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::दौड़ते आकाश-पथ से
::जा रहे किस देश को घन ?

:देख जिनको कर रही सज्जा प्रकृति-बाला,
:देख जिनको आज छलकी पड़ रही हाला,
::जो लगाए आश, उनको
::छोड़कर क्यों जा रहे घन ?

:हर तृषित की प्यास को तुमको बुझाना है,
:हर भ्रमित को राह भी तुमको सुझाना है,
::पर, बिना बरसे अरे तुम
::जा रहे किस देश का घन ?

:यों तुम्हारा देर से आना नहीं अच्छा,
:फिर गरज कर, क्रोध में जाना नहीं अच्छा,
::एक पल रुक कर बताओ
::जा रहे किस देश को घन ?
:1949
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