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18:50, 28 अगस्त 2008 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
::दौड़ते आकाश-पथ से
::जा रहे किस देश को घन ?
:देख जिनको कर रही सज्जा प्रकृति-बाला,
:देख जिनको आज छलकी पड़ रही हाला,
::जो लगाए आश, उनको
::छोड़कर क्यों जा रहे घन ?
:हर तृषित की प्यास को तुमको बुझाना है,
:हर भ्रमित को राह भी तुमको सुझाना है,
::पर, बिना बरसे अरे तुम
::जा रहे किस देश का घन ?
:यों तुम्हारा देर से आना नहीं अच्छा,
:फिर गरज कर, क्रोध में जाना नहीं अच्छा,
::एक पल रुक कर बताओ
::जा रहे किस देश को घन ?
:1949