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|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:तुम कहते, ‘गाओ आज गीत !
:है पर्व मिलन का शुभ पुनीत !’
:जीवन में सुखमय लहरों का
:कंपन बरबस भर देते हो,
:और तभी आ चपके-चुपके
:उर धन-राशि चुरा लेते हो,
::खो जाते भाव उदासी के
::
:तुम दुःख भुला देते अतीत !
:तुम मधु-पूरित शीतल निर्झर
:हो मेरी जीवन-सरिता के,
:छा जाते हो प्रतिपल मेरे
:प्राणों के स्वर में कविता के,
::मूक पराजय की बेला में
::मैं जाता तुमको देख जीत !
:1949
{{KKRachna
|रचनाकार=महेन्द्र भटनागर
|संग्रह= अंतराल / महेन्द्र भटनागर
}}
<poem>
:तुम कहते, ‘गाओ आज गीत !
:है पर्व मिलन का शुभ पुनीत !’
:जीवन में सुखमय लहरों का
:कंपन बरबस भर देते हो,
:और तभी आ चपके-चुपके
:उर धन-राशि चुरा लेते हो,
::खो जाते भाव उदासी के
::
:तुम दुःख भुला देते अतीत !
:तुम मधु-पूरित शीतल निर्झर
:हो मेरी जीवन-सरिता के,
:छा जाते हो प्रतिपल मेरे
:प्राणों के स्वर में कविता के,
::मूक पराजय की बेला में
::मैं जाता तुमको देख जीत !
:1949
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