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करे क्रुद्ध गर्जन
बधिर नभ।
207घन गर्जनबधिर हुआ नभचपलापात।208कुटिल द्युतिचीरती चपला की अम्बर काँपे।209रुके न अश्रुकूक मारके रोएबेबस मेघा।210छिड़ा दंगलफट पड़ा बदराउजड़ी बस्ती।211अरी ओ धूप!कहाँ से ले आई तूस्वर्णिम रूप।212छत पे बैठासूप भर सूरजबाँटता धूप।213धूप मुस्कानदो पल क्या बिखरीमिटी थकान।214छोड़ो क्रन्दनदो पल का जीवनदर्द न बाँटो ।215जीभ की कैंचीसुख -0-पगी चादरकाटी तो रोए।216पूजा से छूटेजीभ की छुरी लेकेशत्रु -से टूटे।
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